यह कहानी है किशोर कुमार रजक की जिन्होंने कभी हार नहीं मानी जिन्होंने अपने मेहनत के आगे साड़ी चुनौतियों का दत्त क्र सामना किया अपने लगन और परिश्रम से एक छोटे से गाओ से एक बड़े अफसर बन कर निकले आज इनके नाम से इनके गाओ का बच्चा बच्चा भी प्रेरित हो जाता ह।
किशोर कुमार रजक की सक्सेस स्टोरी – संघर्ष, मेहनत और सफलता की मिसाल है किशोर कुमार रजक (Kishor Kumar Rajak) एक वक्त में कभी बकरियां चराया करते थे। ईंट-के भट्टों पर करते थे मजदूरी। अपने कॉलेज में फेल भी हुए, मगर अपना अफसर बनने का ख्वाब को हमेशा जिंदा रखा। अपनी मेहनत में कोई कमी कोई भी कसर नहीं छोड़ा और उसके बाद पहले ही प्रयास में यूपीएससी (UPSC) परीक्षा को क्रैक करके दिखया दिया सभी को
किशोक कुमार रजक झारखंड (Jharkhand) के बोकारो जिले में चंदनकेर विधानसभा गांव बुड्ढीबिनोर के रहने वाले हैं। धनबाद की कोयला खदान में मजदूर दुर्योधन और उनकी बीवी रेणुका देवी के घर साल 1986 को जन्म हुआ किशोर कुमार का उनके चार भाई और एक बहन है और वो उनसब में सबसे छोटे थे। और आज राजधानी रांची से लगभग तीस किलोमीटर दूर खूंटी जिले में झारखंड पुलिस डीएसपी के पध् पे कार्यरत हैं।
दीये की रोशनी में पढ़ाई कर बने अफसर
उनसे की गयी बातचीत के दौरान किशोर कुमार कहते हैं कि उनका बचपन बहुत ही गरीबी में बीता। उनके घर में बिजली तक नहीं थी। उन्होंने दीया और लालटेन की रोशनी में अपनी पढाई को पूरा किया। गांव के खेतों में धान रोपने के बाद पशुओं के चरने के लिए जगह तक नहीं बचती थी। तो ऐसे में किशोर कुमार अपने सभी दोस्त निरंजन, वरुण, सबल आदि के साथ घर से तीन-चार किलोमीटर दूर काफी घने जंगलों में बकरियां और बैल को चराने के लिए जाया करते थे। और इनका यह सिलसिला खेत खाली होने तक जारी रहा।
ईंट-भट्टों पर मजदूरी करने वाले दिन मुझे आज भी याद है
किशोर कुमार बताते हैं कि बकरियां को चराने के साथ ही साथ ईंट-भट्टों पर भी मजदूरी करने वाले वो मुश्किल दिन वो कभी नहीं भूल सकता। अपने चाचा जी के साथ ईंट-भट्टों पर मजदूरी करने जाते थे। आज भी मुझे याद है की उस वक्त भट्टे पर एक हजार ईंट निकालने के सिर्फ चार रुपए और रोड में ईंट भरने के सिर्फ 12 रुपए ही मिलते थे। उस वक्त सोचा भी नहीं था कि एक दिन कभी अफसर बन सकूंगा, मगर मेरे टीचर की सीख ने मेरी पूरी ज़िन्दगी बदल दी।मेरे टीचर ने बोला था कि अगर मजदूरी करोगे तो मजदूर ही बनोगे और मेहनत से पढोगे तो एक अफसर बनोगे ।
कॉलेज की पढ़ाई को इग्नू से पूरा किया
किशोर कुमार जी की पढ़ाई गांव के एक सरकारी स्कूल से ही शुरू हुई। और वो सरकारी स्कूल जिसकी छत टपकती थी और वह एक ही कमरे में सभी पांच कक्षाओं के बच्चे एक साथ बैठकर साथ में पढ़ाई किया करते थे।अपने स्कूल की पढ़ाई को पूरा कर किशोर ने साल 2004 में इग्नू से इतिहास विषय में स्नातक के लिए दाखला लिया। और साल 2007 में एक सेमेस्टर में वो फेल हो गए तो उनका हौसला टूटा, लेकिन फिर अपनी मेहनतसे साल 2008 में स्नातक की डिग्री को लिया।
गाँव से दिल्ली आने तक के पैसे नहीं थे
डिग्री लेने के बाद किशोर कुमार रजक अपनी यूपीएससी की तैयारी के लिए दिल्ली आना चाहते थे, मगर अपनी आर्थिक गरीबी से खुदको रोक लीया। उस वक्त इतना बुरा दिन था की मेरे जान-पहचान वाले ने उधार कुछ रुपए तक मुझे नहीं दिए। फिर मेरी बड़ी बहन जिनका नाम पुष्पा देवी है उन्होंने अपन गुल्लक तोड़ा। उसमें उनके जमा किये 4 हजार रुपए निकले और उन्होंने मुझे दिए फिर मै पैसे लेकर दिल्ली के लिए चल पारा उसके बाद सीधा अपनी upsc की परीक्षा के लिए जुट गया
बनारस की वर्षा पे दिल हार बैठे
एक अफसर बनने का ख्वाब लेकर वो झारखंड से दिल्ली आये और फिर किशोर कुमार यहां नेहरू विहार व गांधी विहार में एक किराए के मकान में रहते थे। अपनी यूपीएससी की कोचिंग का खर्च निकालने के लिए वो अपने मकान मालिक के बच्चों को पढ़ाया करते थे। फिर उसी बीच यूपी के बनारस में रेहनी वाली वर्षा श्रीवास्तव भी किशोर कुमार के साथ ही यूपीएससी की कोचिंग साथ में किया करती थीं। पहले दोनों में अच्छी दोस्ती हुई, फिर वो दोस्ती धीरे-धीरे प्यार में बदल गई। उसके बाद दोनों ने नवंबर साल 2017 में लव मैरिज किया। दोनों का आज एक बच्चा भी है और वर्षा आज एक वकील ह।
एक आईपीएस बनने का बड़ा ख्वाब लेकर दिल्ली आए किशोर कुमार ने अपनी कड़ी मेहनत के दम पर यूपीएससी परीक्षा को साल 2011 पहले ही प्रयास में 419 रैंक से पास कर ली। लेकिन वो आईएएस या आईपीएस तो नहीं बन पाए, लेकिन सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी) के असिस्टेंट कमांडेंट की नौकरी मिल गयी। फिर साल 2013 में उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल में सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी) के असिस्टेंट कमांडेंट की एक साल की ट्रेनिंग में चले गए।

फिर उस वक्त किशोर कुमार को ये अहसास हुआ कि उन्हें अफसर बनकर अपने ही स्टेट के लोगों की सेवा करनी है। उसके बाद उन्होंने 6 महीने बाद ही अपनी ट्रेनिंग को बीच में छोड़कर वापस से दिल्ली चले गए और एक बार फिरसे यूपीएससी की तैयारियों में लग गए। साल 2015 में साक्षात्कार पहुंचे, मगर इस बार उनका चयन नहीं हुआ।
उसके बाद वो अपने ही स्टेट में एक अफसर बनने के ख्वाब को लेकर किशोर कुमार दिल्ली से झारखंड वापिस लौट आए और एक कोचिंग संस्थान में भी पढ़ाने लगे। और साथ ही साथ स्टेट पीसीएस की तैयारियों में भी वो लग गए। साल 2016 में इन्होंने वो स्टेट पीसीएस परीक्षा को अपनी कड़ी मेहनत से पास कर लिया और झारखंड पुलिस में डीएसपी बने। फिलहाल झारखंड पुलिस के स्पेशल इंडियन रिजर्व बटालियन (SIRB) में वो अभी कार्यरत हैं।