हमारे देश में आज भी ऐसे कई गांव और परिवार है जो आज भी शिक्षा से वंचित है। इसकी वजह समाज की दकियानूसी सोच और बाल विवाह है। इसी का शिकार हुई एक ऐसी ही दलित लड़की, जिसने महज़ कक्षा 6 तक ही शिक्षा हासिल की और 12 साल की बाली उम्र ब्याह दी गई। जीवन व्यापन के लिए जो महिला मुम्बई आ गयी और महज़ 2 रुपये की मजदूरी एक फैक्ट्री में की, हालांकि आज वो 2 हज़ार करोड़ की समपत्ति की मालकिन है। आज हम आपको उसी के हौंसले की उड़ान की कहानी सुनाने वाले हैं जिसके पास कभी बस में सफर करने को 60 पैसे नहीं होते थे मगर आज उसके नाम मुम्बई की दो सड़कें हैं। जिस लड़की की आज हम बात करने वाले हैं उसका नाम कल्पना सरोज है, जोकि आज एक सफल बिजनेसवुमन हैं।
कमानी ट्यूब लिमिटेड की चेयरपर्सन के पद पर काम करने वाली कल्पना सरोज के संघर्ष की कहानी बड़ी ही दिलचस्प है। कल्पना सरोज एक ऐसे संघर्ष के पथ पर थी जहां इस मंजिल की कल्पना करना भी नामुमकिन था। मगर अपनी कड़ी मेहनत से कल्पना ने इस मुकाम को हकीकत में ला कर खड़ा कर दिया। 1961 में महाराष्ट्र के छोटे से गांव अकोला के दलित परिवार में जन्मी कल्पना के पिता पेशे से हवलदार थे। जो मुशकिल से 300 रुपये महीने के कमा पाते थे। एक बड़े परिवार को इतनी कम आय पर पालना मुश्किल था ऊपर से उस वक्त गांव में रूढ़िवादी सोच भी चरम पर थी।
Coming from the slums of Mumbai to growing her business empire, Kalpana Saroj is an astute businesswomen and a passionate social worker working towards women empowerment, education and healthcare. Kalpana is truly an inspiration to many. TeamKalpanaSarojhttps://t.co/FRYQryBeBY pic.twitter.com/HjGpldjkuT
— Padmashree Dr. Kalpana Saroj (@KalpanaSaroj) July 4, 2018
कल्पना को पढ़ाई में गहरी रुचि थी, गांव का सरकारी स्कूल उसे हमेशा अपनी और आकर्षित करता था। मगर दलित होने की वजह से उन्हें यहां भी शिक्षकों और बाकी बच्चों की उपेक्षा का सामना करना पड़ता था। सिर्फ इतना ही नही उस समय गांव में लड़की होने को भी एक श्राप की तरह समझा जाता था। उनके परिवार में भी यही मानसिकता थी, उनके सगे मामा खुद उनसे कहा करते थे कि तू पैदा क्यों हो गयी। परिवार की इसी छोटी सोच के कारण महज़ 12 साल की बाली उम्र में कल्पना के हाथ पीले करवा दिए गए। नन्ही सी कल्पना जब ससुराल गयी तो वहां भी उन्हें सिवाए परेशानी के कुछ नहीं मिला।
ससुराल के प्रत्येक सदस्य उनके साथ बदसलूकी से पेश आते थे, यहां तक की उनके पति भी उनसे सीधे मुंह बात नहीं करते थे। ससुराल वालों ने कल्पना की हालत बद से बत्तर कर रखी थी, छह महीने में ही उनकी बुरी गत बना कर रख दी थी। एक दिन जब उनके पिता उनसे मिलने आये तो अपनी बेटी को इस हालत में देख नहीं पाए और उन्हें वापस अपने साथ घर ले आये। कल्पना को लगा की अब वो नरक से बाहर आ गयी है अब वो खुल कर अपनी ज़िंदगी जी पाएगी। मगर समाज को कल्पना का यह सुख बर्दाश नहीं हुआ। उन्होंने जब फिर से पढ़ाई करने की ठानी तो लोग तरह तरह की बातें उनके लिए करने लगे।
PADMASHRI & NARI SHAKTI AWARDEE KALPANA SAROJ JI who is the epitome of woman empowerment and entrepreneurship has been selected for the BHARAT GAURAV AWARD this year.(2019).
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दुनिया की बातों को सहन नहीं कर पाई कल्पना ने आखिरकार तंग आ कर पढ़ाई छोड़ दी। एक समय कल्पना अपने जीवन से इस तरह त्रस्त हो चुकी थी कि उन्होंने इसे खत्म करने की सोच ली और खटमल की दवा खरीद कर पी ली। मगर कल्पना को कुछ बड़ा करना था लिहाजा इस घटना को भी वे झेल गयी। 16 साल की उम्र में कल्पना अपने मामा के यहां मुम्बई चली गयी। कल्पना को सिलाई का काम आता था लिहाजा उसे एक फैक्ट्री में नौकरी भी मिल गयी जहां 2 रुपये रोज की दिहाड़ी मिलती थी।
कल्पना को जब यह काम आ गया तो उन्होंने अपने घर में ही सिलाई मशीन लगा ली अजर 16 16 घंटे उस पर काम करने लगी। कल्पना के सपने बड़े थे जो इतने कम संसाधनों में पूरे नहीं होने थे लिहाजा उन्होंने 22 साल की उम्र में बैंक से लोन लिया और फर्नीचर का बिजनेस खोला, बिजनेस चल निकला। अब शहर में काफी लोगों से उनकी पहचान हो चुकी थी, और यही पहचान उन्हें रियल स्टेट के कारोबार में लाई। सन 2000 में उन्होंने सालों से बंद पड़ी कमानी ट्यूब लिमिटेड को खरीद लिया। इसके बाद उनको भारत की सफल बिजनेस वुमन की लिस्ट में शीर्ष पर रखा जाने लगा।