आखिर कैसे बब्बर शेर बना मां दुर्गा की सवारी, जानिये इसके पीछे की एक पौराणिक कथा

हिंदू धर्म में 33 कोटि के देवी देवता होते हैं। 33 कोटि का मतलब करोड़ नहीं किंतु, प्रकार होते हैं। अर्थात हिंदू धर्म में 33 प्रकार के देवी देवता होते हैं। प्रत्येक देवी देवताओं का अपना अलग-अलग महत्व होता है। उनके अपने पर्व व त्यौहार भी आते हैं और उनका एक वाहन भी होता है। ऐसे में मां दुर्गा के वाहन की बात करें तो, इनका वाहन सिंह अर्थात शेर है। गौरतलब यह है कि, 7 अक्टूबर दिन बृहस्पतिवार से नवरात्रि का पावन पर्व शुरू हो रहा है। यह, पावन पर्व 14 अक्टूबर तक चलेगा तथा 15 अक्टूबर को दशहरा मनाया जाएगा, जिसमें रावण की प्रतिमा भी जलाई जाएगी।



इन 9 दिनों मे भक्त मां दुर्गा को प्रसन्न करने की पूरी कोशिश करते हैं। बताया जाता है कि, इन 9 दिनों तक मां दुर्गा धरती पर ही विचरण करती है। नवरात्रि में मां दुर्गा की घर घर और जगह-जगह विशेष पूजा-अर्चना भी की जाती है। कई लोग उनकी मूर्तियां स्थापित भी करते हैं। इस दौरान अधिकतर तस्वीरों और मूर्तियों में वे सिंह की सवारी करती नजर आती हैं। ऐसे में क्या आपने कभी यह सोचा है कि, आखिर मां दुर्गा ने शेर को ही अपने वाहन के रूप में क्यों चुना? वह उनका वाहन कैसे बना? आज हम आपको इससे जुड़ी पौराणिक कथा सुनाने जा रहे हैं।



पौराणिक कथा के अनुसार, मां पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए कई वर्षों तक कठोर तपस्या की थी। एक दिन भगवान शंकर ने मजाक में मां पार्वती को काली बोल दिया, तो यह सुनकर मां पार्वती नाराज हो गई। वह कैलाश पर्वत छोड़कर तपस्या करने चली गई। जब वह अपनी तपस्या में ध्यान मग्न थी तब वहां एक भूखा शेर आ गया। वह मां पार्वती को अपना भोजन बनाना चाहता था। किंतु जब उसने देखा कि पार्वती जी पूरे तन मन से तपस्या कर रही है तो वह वहीं रुक गया। उसने मां पार्वती की तपस्या के खत्म होने का भूखा प्यासा रहकर इंतजार किया।



मां पार्वती की तपस्या कई वर्षों तक चली। शेर भी उनकी आंख खुलने के इंतजार में कई वर्षों तक भूखा प्यासा वहीं बैठा रह गया। जब पार्वती जी की तपस्या पूर्ण हुई तो भोलेनाथ प्रकट हो गए। उन्होंने मां पार्वती को गौर वर्ण यानी गौरी होने का वरदान दिया। तत्पश्चात मां पार्वती गंगा स्नान करने चली गई। जब वह नहा कर निकली तो उनके शरीर से एक सांवली लड़की प्रकट हुई। यह कौशिकी गौर वर्ण होने के बाद माता गौरी कहलाई।



फिर एकाएक, मां पार्वती की नजर भूखे प्यासे बैठे शेर पर गई तो वह प्रसन्न हो गई। उन्होंने शेर को वरदान स्वरुप अपना वाहन बना लिया। फिर तभी से, शेर मां पार्वती का वाहन कहलाने लगा। वैसे शेर के मां पार्वती का वाहन बनने को लेकर एक और कथा काफी प्रचलित है।



यह दूसरी कथा स्कंद पुराण में पढ़ने को मिलती है। इसके अनुसार, भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय द्वारा देवासुर संग्राम में दानव तारक और उसके दो भाई सिंहमुखम और सुरापदनम को हराया गया था। इस दौरान सिंहमुखम , कार्तिकेय से माफी मांगने लगा था। इससे कार्तिकेय प्रसन्न हुए और उन्होंने खुश होकर उन्हें शेर बना दिया। इसके साथ ही उन्होंने सिंह मुखम को आशीर्वाद दिया कि, वह मां दुर्गा का वाहन बनेगा। बस तभी से शेर को हम मां दुर्गा के वाहन के रूप में देखने लगे।

जब भी भक्त मां दुर्गा की पूजा करते हैं तो साथ में शेर की भी पूजा-अर्चन करते हैं। इससे मां दुर्गा और भी अधिक प्रसन्न हो जाती हैं।