शक्ल सूरत देख लगा कोई पागल है, पुलिस ने चेक किया तो निकला IIT प्रोफेसर

अंग्रेजी में एक कहावत है। ‘डॉन्ट जज आ बुक बाय इट्स कवर’। यानि किसी इंसान को उसके हूलिए के आधार पर जज मत करो। अब इस शख्स को ही ले लीजिए। इसका साधारण हुलिया देख कोई भी इसे एक वनवासी ग्रामीण समझेगा। लेकिन असल में ये शख्स  IIT के प्रोफेसर है। हम यहां IIT दिल्ली से इलेक्ट्रॉनिक में इंजीनियरिंग पढ़े हुए आलोक सागर की बात कर रहे हैं।



अशोक बीते 33 वर्षों से अपनी लग्जरी लाइफ छोड़ मध्य प्रदेश के दूरदराज गांवों में आदिवासी जीवन जी रहे हैं। उनके पास प्रॉपर्टी के नाम पर केवल तीन कुर्ते और एक साइकिल है। वे 1977 में वे यूएस जाकर ह्यूस्टन यूनिवर्सिटी से PHD भी कर चुके हैं। वे डेंटल ब्रांच में पोस्ट डॉक्टरेट एवं समाजशास्त्र विभाग, डलहौजी यूनिवर्सिटी (कनाडा) से फेलोशिप भी कर चुके हैं।



आईआईटी दिल्ली प्रोफेसर बनने के बावजूद उनका जॉब में मन नहीं लगा तो उन्होंने नौकरी छोड़ दी। वे यूपी, मप्र, महाराष्ट्र जैसे राज्यों में रह चुके हैं। उनके पिता सीमा शुल्क उत्पाद शुल्क विभाग में काम करते थे। छोटा भाई अंबुज सागर आईआईटी दिल्ली में प्रोफेसर है। वहीं एक बहन अमेरिका कनाडा तो दूसरी जेएनयू में थी। इतना ही नहीं आलोक सागर RBI के पूर्व गर्वनर रघुराम राजन के गुरु भी रह चुके हैं।



आलोक सागर का मानना है कि इंसान को नींद और मन का चैन जहां मिले, वहीं असली जीवन है।वे अभी तक पचास हजार से अधिक पेड़ लगा चुके हैं। एक बार उनके हुलिये को देख मध्य प्रदेश के बैतूल जिला इलेक्शन के दौरान स्थानीय अफसरों को उन पर शक हुआ था। उन्होंने उन्हें बैतूल से जाने को बोल दिया था। लेकिन जब आलोक ने अपनी डिग्रियां दिखाई तो प्रशासन भी हैरान रह गया था। जब जांच के लिए उन्हें पुलिस स्टेशन बुलाया गया तो पता चल कि वे एक IIT के पूर्व प्रोफेसर हैं।



आलोक आदिवासियों के हक के लिए आवाज उठाते हैं। वे आज भी साइकिल लेकर पूरे गाँव में भ्रमण करते हैं।आदिवासी बच्चों पढ़ाते हैं। पौधों की देखरेख करते हैं। वे आज सभी के लिए मिसाल हैं।