झोपड़ी में रहती थी, यूरोप तक तहलका मचा आई, 8वीं पास फिर भी दिया 22 हजार महिलाओं को काम

राजस्थान के बाड़मेर की रहने वाली रूमा देवी आज सैकड़ों घरेलू और अशिक्षित महिलाओं के लिए प्रेरणा है। झोपड़ी में पली-बढ़ी होने के बावजूद आज वह यूरोप तक का सफर कर चुकी है। वे न सिर्फ खुद अपने पैरों पर खड़ी है बल्कि उन्होंने 22000 गरीब महिलाओं को रोजगार भी दिया।



रुमा देवी का बचपन बेहद गरीबी से बीता। 5 वर्ष की उम्र में उन्होंने मां इमरती देवी का निधन देखा। पिता खेताराम ने साथ छोड़ा तो चाचा के यहां रहकर 8वीं तक पढ़ी। 17 साल की उम्र में जोधपुर केस नशा मुक्ति संस्थान में कार्य करने वाले टिकुराम से हो गई।



रुमा देवी की किस्मत तब चमकी जब वे 2008 में देवी ग्रामीण विकास एवं चेतना संस्थान नामक एक एनजीओ से जुड़ी। यह एनजीओ मध्यम वर्गीय महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाना और हस्तशिल्प कला सिखाने का कार्य करता था। रुमा देवी ने अपनी मेहनत और हुनर से हस्तशिल्प उत्पाद के कई नए डिजाइन बनाए जिनकी मार्केट में मांग बढ़ने लगी।



2010 में रूमा देवी को एनजीओ का अध्यक्ष बना दिया। फिर बाड़मेर जिले में एनजीओ का मुख्य दफ्तर स्थापित किया गया। अब रुमा देवी के साथ 22000 महिलाएं हाथ में साड़ी ,चादर ,कुर्ता जैसे कई उत्पाद बनाकर घर बैठे अपना पेट पालती हैं।



इन महिलाओं के बनाए उत्पाद लंदन, जर्मनी से लेकर सिंगापुर तक कई देशों में बिकते हैं। 2016-17 में रुमा देवी और उनकी साथी महिलाओं को जर्मनी में आयोजित होने वाले दुनिया के सबसे बड़े ट्रेड फेयर में बुलाया गया। इस फेयर की एंट्री फीस 1500000 रुपए होती है, लेकिन रुमा देवी और उनकी टीम को फ्री में आमंत्रित किया गया था।



इसके अलावा रुमा देवी 2020 में अमेरिका में हुए 2 दिन के वर्ल्ड इंडिया कॉन्फ्रेंस में भी अपने काम का प्रदर्शन भी कर चुकी हैं। 2018 में उन्हें सर्वोच्च नागरिक सम्मान नारी शक्ति पुरस्कार से भी नवाजा जा चुका है।

रूमा देवी की बदौलत उनका संस्थान सालाना करोड़ों की कमाई करता है। कभी झोपड़ी में रहने वाली रुमा देवी आज कई मकानों की मालकिन है।