नदी में सिक्के डालने की परंपरा कैसे शुरू हुई? वजह अंधविश्वास नहीं साइंस है

नदियों में सिक्के डालने की परंपरा कई सदियों से चली आ रही है। आप ने भी ऐसा किया होगा। लेकिन क्या आप ऐसा करने की वजह जानते हैं? आप में से कई लोगों को ये अंधविश्वास लगता होगा। लेकिन इसके पीछे एक साइंस भी है। दारसल जब ये परंपरा शुरू हुई थी तब स्टील के नहीं बल्कि तांबे के सिक्के चला करते थे।



तांबा पानी का प्यूरीफिकेशन (Water Purification) करने का काम करता है। यही वजह है कि लोग पुराने जमाने में नदी या तालाब के आसपास से गुजरते समय उसमें तांबे का सिक्का डाल दिया करते थे। साइंस भी ये बात मानता है कि तांबे से पानी साफ होता है। तांबे के बर्तन का पानी पीने से कई बीमारियाँ दूर होती है। ये पानी की गंदगी को दूर कर शरीर की आवश्यकता पूरी करता है।



तांबा सूर्य की धातु मानी जाती है। यह हमारे शरीर के लिए एक जरूरी तत्व भी है। वहीं लाल किताब के मुताबिक तांबे को बहते हुए पानी में डालने से सूर्य और पितर खुश होते हैं। ज्योतिष शास्त्र की माने तो जल में चांदी या तांबे के सिक्के एवं पूजा सामग्री प्रवाहित करने से कुंडली दोष दूर होते हैं। हालांकि आजकल के स्टील के सिक्के नदी तालाब में डालने का को लाभ नहीं होता है।