भारत में हुनर की कोई कमी नहीं है. सुविधाओ से परिपूर्ण व्यक्ति तो कुछ बड़ा कर ही सकता है, लेकिन सुविधाओ का मुंह तक ना देखने वाली आदिवासी महिलाओं ने भी देश में कमाल कर दिखा दिया है. मध्यप्रदेश के उदयपुर गाँव की महिलाओं ने एक अनोखे साबुन का निर्माण किया है, जिसकी डिमांड अब विदेशो से भी जमकर आ रही है.
आदिवासी क्षेत्र को पिछड़ा और आधुनिक समाज से कटा हुआ समझने वाली दुनिया को यही आदिवासी समाज आज खाने से लेकर नहाने तक की वस्तुएं प्रदान कर रहा है. मध्यप्रदेश के खंडवा के पंधाना विधानसभा में एक गांव है उदयपुर. जहाँ के लोग ज्यादातर कृषि कार्यों के द्वारा ही अपना जीवन यापन करते हैं. ऐसे में वहां की महिलाएं भी खेती पर ही आश्रित है. लेकीन कुछ दिनों पहले कुछ ऐसा हुआ कि उनकी जिन्दगी ही बदल गयी.
दरअसल पुणे के ली नामक एक व्यक्ति ने प्लांट उदयपुर गावं में साबुन बनाने के एक प्लांट की शुरुआत की. उसके बाद उन्होंने वहां की स्थानीय महिलाओं को इससे जोड़ा और उन्हें शुरूआती ट्रेनिंग दी. इसके बाद महिलाओं ने काम शुरू किया. शुरुआत में कुछ उत्पाद असफल भी हुए लेकिन आखिरकार उनका साबुन मार्केट में चल निकला.
आदिवासी महिलाए इस साबुन को विभिन्न प्रकार के फ्लेवर में और कई औषधीय वनस्पतियों के माध्यम से तैयार करती हैं. त्वचा पर इसका बेहद कारगर असर पड़ रहा है और लोगो द्वारा किसे काफी पसंद किया जा रहा है. इस साबून की मांग ना सिर्फ़ देश में बल्कि विदेशों से भी होने लगी है. आदिवासी महिलाओं ने वो चमत्कार किया हैं कि अब दुनिया उनके गाँव की तरफ आने को मजबूर हैं.

इस साबुन की सबसे ख़ास बात इसकी थैली और साबुन की कीमत है. साबुन की थैली को पर्यावरण कि दृष्टि से तैयार किया गया है, जो प्रदूषण को नहीं फिलाती. इस साबुन को रखने वाला पैकेट जूट का बना हुआ है. इसके साथ ही इस साबुन के दाम की बात करें तो इसकी कीमत 250 रूपये से लेकर 350 रूपये तक है. आप अंदाजा लगा सकते हैं कि इतना महंगा होने के बावजूद भी इसकी जबरदस्त डिमांड है तो इसकी लोकप्रियता कितनी होगी.
हाल ही में इन स्वउद्दयमी आदिवासी महिलाओं को मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी बधाई भेजी है. उन्होंने ट्वीट में लिखा है कि खंडवा के पंधाना विधानसभा के उदयपुर गांव की बहनों ने अनूठा आयुर्वेदिक साबुन बनाकर अपनी सफलता की गूंज अमेरिका तक पहुंचा दिया है। प्रदेश को आप पर गर्व है। बहन श्रीमती रेखा जी, श्रीमती तारा जी, सफलता के लिए उनको बहुत सारी बधाइयां।

इन महिलाओं ने साबित कर दिया है कि अगर अपने प्राचीन पद्धतियों का अगर समुचित इस्तेमाल किया जाए तो उस हुनर के आगे दुनिया झुकती है, और सलाम भी करती है. इसके लिए किसी बड़े शहर के चकाचौंध की जरूरत नही होती.