1999 के कारगिल युद्ध के हीरो कैप्टन विक्रम बत्रा (Vikram Batra) अपने साहस और वीरता के लिए जाने जाते हैं। वे 7 जुलाई 1999 को पाकिस्तान के 7 जवानों सहित पूरे बंकर को तबाह करते हुए शहीद हुए थे।
विक्रम बत्रा की मां कमल कांत बत्रा को बेटे के शहीद होने का अंदेशा पहले ही हो गया था। उन्हें सुबह से अजीब बेचैनी हो रही थी। दोपहर स्कूल में वह फूट-फूटकर रोई थी। साथी टीचर्स चुप कराते हुए कह रहे थे आपके बेटे विक्रम को कुछ नहीं होगा, वह दुश्मनों को हराकर आएगा।


फिर शाम को जब वह घर पहुंची तो सेना के दो ऑफिसर्स ने उन्हें बेटे की शहादत की सूचना दी। इस खबर ने उन्हें गहरा झटका दिया, लेकिन वे बेटे की शहादत पर गर्व करती हैं। उनका कहना है मेरे जैसे बेटों के चलते आज करोड़ों मांओं की गोद सुरक्षित है।


विक्रम को मां के हाथ का राजमा-चावल बड़ा पसंद था। जब भी घर में राजमा-चावल बनते हैं तो मां की आंखें बेटे की याद में नम हो जाती है। भाईदूज पर उनके जुड़वा भाई विशाल और दो बहनें विक्रम की याद में रो पड़ते हैं। मां ने विक्रम की याद में घर में एक म्यूजियम भी बनवा रखा है।

बेटे के जन्मदिन (26 जुलाई) पर मां ज्योति प्रज्जवलित कर जरूरतमंदों को विक्रम की पसंद का खाना राजमा-चावल, कढ़ी-चावल, हलवा-पूरी बांटती हैं। मां कहती हैं मेरा बेटा बहादुर होने के साथ पढ़ने में भी इंटेलिजेंट था। गणित के सवाल एक चुटकी में हल कर देता था।

विक्रम को बचपन में पिता गिरधारी लाल बत्रा से भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, गुरु गोविंद सिंह, सुभाषचंद्र बोस की कहानियां सुनना पसंद था। शायद इसी वजह से उन्होंने अपना जीवन देश की सेवा में न्यौछावर कर दिया।
