कर्नाटक स्थित हंपी जिसे रामायण काल का किष्किंधा कहा जाता है, वहां स्थित है भगवान शिव का एक अद्भुत मंदिर, जिसे विरुपाक्ष मंदिर के नाम से जाना जाता है. इस मंदिर में भगवान शिव की विरुपाक्ष रूप में पूजा की जाती है. यह मंदिर भगवान शिव और देवी पंपा को समर्पित है. अनादी काल से देवलोक से संवाद करता है मंदिर अपने अंदर कई राज समेटे हुए हैं.
यह मंदिर प्राचीन काल में बनाया गया था और इस मंदिर में अनेक प्रकार की कलाकृतियां समाहित है. इस मंदिर के बारे में कई प्रकार की लोक कथाएं भी मशहूर है. इस मंदिर की खासियत यह है कि इस मंदिर के खंभों से संगीत यानी गाने की आवाज आती है. इसीलिए इसे म्यूजिकल पिलर्स भी कहा जाता है. इन खंभों से संगीत की आवाज अपने आप निकलती रहती है. इसका रहस्य जानने के लिए कई प्रकार की खोजे भी हुई. जिसमें एक खोज अंग्रेजों द्वारा भी की गई थी, जिसमें उन्होंने खंभे को तोड़कर देखा था. लेकिन उन्हें यह जानकर आश्चर्य हुआ कि खम्भे अंदर से खोखले थे. अन्दर कुछ भी नही था. छानबीन में उन्हें निराशा हाथ लगी.

आज तक इन खंभों से संगीत कैसे निकलता है, इस बात का रहस्य किसी को पता नहीं चल सका है. यह मंदिर तुंगभद्रा नदी के दक्षिणी किनारे के हेम कूट पहाड़ी के तलहटी पर बना हुआ है. इस मंदिर के आसपास कई अन्य छोटे-छोटे मंदिर है और बताया जाता है कि इस मंदिर को विक्रमादित्य द्वितीय की पत्नी लोकमाह देवी द्वारा बनवाया गया था. यह मंदिर ईट और चूने से बना हुआ है, जो कि द्रविड़ स्थापत्य शैली की निशानी है. इस मंदिर की मान्यता यह है कि यह स्थान भगवान विष्णु का निवास स्थान था. लेकिन भगवान विष्णु ने इसे रहने के लिए अधिक विशाल समझा और इसे छोड़कर क्षिर
सागर चले गए.

इस मंदिर के बारे में एक और लोकोक्ति मशहूर है कि भगवान राम से विजय पाने के लिए रावण ने भगवान शिव की आराधना की और उनसे वर मांगा कि वह लंका में स्थापित हो. भगवान शिव ने रावण को कहा कि अगर वह उन्हें बिना जमीन पर रखें लंका तक ले जाएगा, तो ही वह लंका में विराजमान होंगे अन्यथा उन्हें जहां रखा जाएगा वह वहीं रह जाएंगे.

रावण शिवलिंग को लेकर लंका की तरफ प्रस्थान करता है और इसी बीच उसे लघुशंका लग जाती है. वह शिवलिंग को एक दूसरे व्यक्ति को दे देता है. काफी समय बाद तक जब रावण नहीं आता तो अधिक भारी होने की वजह से वह व्यक्ति शिवलिंग को नीचे रख देता है, जिससे भगवान शिव वही विराजमान हो जाते हैं. उसी स्थान पर यह मंदिर स्थित है.

आज भी इस मंदिर की दीवारों पर ऐसी कलाकृतियां देखने को मिल जाती है. यह एक बहुत ही सुंदर पहाड़ी पर बसा हुआ है. यह मंदिर 500 वर्ष से ज्यादा पुराना है और यूनेस्को द्वारा इस मंदिर को राष्ट्रीय धरोहरों में शामिल किया गया है।